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Hindi Poems on Nature 2020
आप आज के हमारे इस Post मे Hindi Poems on Nature पर आधारित कुच्छ कविताएँ पढ़ेंगे, इस पोस्ट मे जो Prakriti Par Kavita लिखी गयी है वो हम सबको प्रकृति के प्रति जागरूक करता है की कैसे हमारी प्रकृति दिन पर दिन बिगड़ती जा रही है. इसी वजह से हम ये Prakriti Par Kavita in Hindi मे लिख रहे है. उमीद करते है की ये Hindi Poems on Nature आपको इस तरफ ध्यान देने के लिए उत्सुक करेंगे।
ये प्रकृति पे आधारित Hindi Poems अलग अलग कवियों की रचनाएँ है जिनके नाम हर Poem के साथ दिया गया है। हम उमीद करते है की आप लोगों को ये Poems On Hindi Nature पर Post और हमारी एक छोटी सी कोशिश आपको पसंद आएगी! इतना ही नही ये Hindi Poems On Nature स्कूल मे पढ़ने वेल विधार्थीयों के लिए भी काम आएगा।
चलिए तो अब हम प्रकृति पर हिंदी कविताएँ स्टार्ट करते है—
Hindi Poems on Nature :
नेचर का हमारे जीवन में बहुत महत्व है नेचर की मदद से ही हम अपना जीवन व्यतीत करते है नेचर भगवान के द्वारा दिया गया वह अनोखा उपहार है | प्रकृति एक बहुत खबसूरत चीज़ है है जिसमे की कई चीज़े आती है और जो हमें भगवान के द्वारा दी गयी है | इसीलिए कई महान लोगो व कविजयो द्वारा उनके दिमाग में कुछ न कुछ प्रकार के विचार दिमाग में आते रहते है इसीलिए हम आपको उन्ही के द्वारा लिखी गयी कुछ कविताओं के बारे में बताते है जिन कविताओं के माध्यम से आप प्रकृति की खूबसूरती के बारे में जान सकते है |
Hindi Poems About Nature:
कलयुग में अपराध का बढ़ा अब इतना प्रकोप आज फिर से काँप उठी देखो धरती माता की कोख !! समय समय पर प्रकृति देती रही कोई न कोई चोट लालच में इतना अँधा हुआ मानव को नही रहा कोई खौफ !!
Prakriti Par Kavita:
कही बाढ़, कही पर सूखा कभी महामारी का प्रकोप यदा कदा धरती हिलती फिर भूकम्प से मरते बे मौत !! मंदिर मस्जिद और गुरूद्वारे चढ़ गए भेट राजनितिक के लोभ वन सम्पदा, नदी पहाड़, झरने इनको मिटा रहा इंसान हर रोज !! सबको अपनी चाह लगी है नहीं रहा प्रकृति का अब शौक “धर्म” करे जब बाते जनमानस की दुनिया वालो को लगता है जोक !! कलयुग में अपराध का बढ़ा अब इतना प्रकोप आज फिर से काँप उठी देखो धरती माता की कोख !!
Poems on Nature in Hindi:
जय भारत माँ जय गंगा माँ जय नारी माँ जय गौ माँ ।। माँ तुम्हारा ये प्यार है हम लोगो का संस्कार है ।। माँ तुम्हारा जो आशीर्वाद है हमारे दिल मे आपका वास है ।। माँ हमारे दिल की धङकन मे तुम्हारे जीवन की तस्वीर है ।। माँ हम तुम्हे अवश्य बचायेंगे माँ तुम्हारे दूघ की ताकत को दुनिया को दिखलायेंगे ।। हम भारत माँ के वीर है हम नारी माँ के पूत है हम गौ माँ के सपूत है हम गंगा माँ के दूत है ।। हमने लाल दूध पिया है नारी माँ का हमने पीला दूध पिया है गौ माँ का हमने सफेद दूध पिया है गंगा माँ का हमने हरा दूध पिया है भारत माँ का ।। इस दूध की ताकत का अंदाज नही दुश्मन की छाती को फाङे हम पर ये अहसान नही हमने लाल दूध पिया है नारी माँ का ।।
Hindi Poem Prakriti:
ह्बायों के रुख से लगता है कि रुखसत हो जाएगी बरसात बेदर्द समां बदलेगा और आँखों से थम जाएगी बरसात . अब जब थम गयी हैं बरसात तो किसान तरसा पानी को बो वैठा हैं इसी आस मे कि अब कब आएगी बरसात . दिल की बगिया को इस मोसम से कोई नहीं रही आस आजाओ तुम इस बे रूखे मोसम में बन के बरसात . चांदनी चादर बन ढक लेती हैं जब गलतफेहमियां हर रात तब सुबह नई किरणों से फिर होती हें खुसिओं की बरसात . सुबह की पहली किरण जब छू लेती हें तेरी बंद पलकें चारों तरफ कलिओं से तेरी खुशबू की हो जाती बरसात . नहा धो कर चमक जाती हर चोटी धोलाधार की जब पश्चिम से बादल गरजते चमकते बनते बरसात।
Hindi Poem on Prakriti Nature:
सुलोचना वर्मा :–
क्यूँ मायूस हो तुम टूटे दरख़्त
क्या हुआ जो तुम्हारी टहनियों में पत्ते नहीं
क्यूँ मन मलीन है तुम्हारा कि
बहारों में नहीं लगते फूल तुम पर
क्यूँ वर्षा ऋतु की बाट जोहते हो
क्यूँ भींग जाने को वृष्टि की कामना करते हो
भूलकर निज पीड़ा देखो उस शहीद को
तजा जिसने प्राण, अपनो की रक्षा को
कब खुद के श्वास बिसरने का
उसने शोक मनाया है
सहेजने को औरों की मुस्कान
अपना शीश गवाया है
क्या हुआ जो नहीं हैं गुंजायमान तुम्हारी शाखें
चिडियों के कलरव से
चीड़ डालो खुद को और बना लेने दो
किसी ग़रीब को अपनी छत
या फिर ले लो निर्वाण किसी मिट्टी के चूल्हे में
और पा लो मोक्ष उन भूखे अधरों की मुस्कान में
नहीं हो मायूस जो तुम हो टूटे दरख़्त…
सुलोचना वर्मा :–
ये सर्व वीदित है चन्द्र
किस प्रकार लील लिया है
तुम्हारी अपरिमित आभा ने
भूतल के अंधकार को
क्यूँ प्रतीक्षारत हो
रात्रि के यायावर के प्रतिपुष्टि की
वो उनका सत्य है
यामिनी का आत्मसमर्पण
करता है तुम्हारे विजय की घोषणा
पाषाण-पथिक की ज्योत्सना अमर रहे
युगों से इंगित कर रही है
इला की सुकुमार सुलोचना
नही अधिकार चंद्रकिरण को
करे शशांक की आलोचना
सुलोचना वर्मा :–
मेरी निशि की दीपशिखा
कुछ इस प्रकार प्रतीक्षारत है
दिनकर के एक दृष्टि की
ज्यूँ बाँस पर टँगे हुए दीपक
तकते हैं आकाश को
पंचगंगा की घाट पर
जानती हूँ भस्म कर देगी
वो प्रथम दृष्टि भास्कर की
जब होगा प्रभात का आगमन स्न्गिध सोंदर्य के साथ
और शंखनाद तब होगा
घंटियाँ बज उठेंगी
मन मंदिर के कपाट पर
मद्धिम सी स्वर-लहरियां करेंगी आहलादित प्राण
कर विसर्जित निज उर को प्रेम-धारा में
पंचतत्व में विलीन हो जाएगी बाती
और मेरा अस्ताचलगामी सूरज
क्रमशः अस्त होगा
यामिनी के ललाट पर
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